Welcome Guest Login or Signup

prathviraj
PROFILE   GALLERY   BLOGS   SCRAPBOOK   FRIENDS   FAVORITES   LYRICS   SMS   QUOTES   JOKES   POLLS   VIDEOS  
 


RSS
मन
Posted On: 04/03/2008 15:12:46




मेरो मन अनत कहाँ सुख पावे।

जैसे उड़ि जहाज की पंछि, फिरि जहाज पर आवै॥

कमल-नैन को छाँड़ि महातम, और देव को ध्यावै।

परम गंग को छाँड़ि पियसो, दुरमति कूप खनावै॥

जिहिं मधुकर अंबुज-रस चाख्यो, क्यों करील-फल खावै।

'सूरदास' प्रभु कामधेनु तजि, छेरी कौन दुहावै॥




- सूरदास



Bookmark: