Wonderful poetry, author is unknown to me.
रात की काली चादर ओà¥à¥‡
मà¥à¤à¤¹ को लपेटे
सोई है कब से
रूठके सबसे
सà¥à¤¬à¤¹ की गोरी
आà¤à¤– न खोले
मà¥à¤à¤¹ से न बोले
जब से किसी ने
कर ली है सूरज की चोरी
आओ
चल के सूरज ढूंढे
और न मिले तो
किरन किरन फ़िर जमा करें हम
और इक सूरज नया बनाà¤à¤
सोई है कब से
रूठके सबसे
सà¥à¤¬à¤¹ की गोरी
उसे जगाà¤à¤
उसे मनाà¤à¤